Solution for Class 10 Science Chapter 6 Life Process

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अध्याय में दिए गए प्रश्न

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1-हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
उत्तर-बहुकोशिकीय जीव बड़े तथा अधिक जटिल होते हैं ,अधिक जटिल होने के कारण अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है तथा इनकी कोशिकाएं अपने आसपास के पर्यावरण के सीधे संपर्क में नहीं रह सकती हैं।  विसरण से ऑक्सीजन प्राप्त करने की गति काफी धीमी तथा कम होती है, जिसके कारण बहुकोशिकीय जीवों में यदि विसरण से ऑक्सीजन की पूर्ति हो, तो ऑक्सीजन की मात्रा उसके लिए अपर्याप्त होगी।अत: हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण अपर्याप्त है।

2-कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?

उत्तर-सजीवों का निर्धारण उन सभी प्रक्रम से, जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण (maintenance) का कार्य करते हैं के आधार पर किया जा सकता है।  अतः सजीव के  निर्धारण के लिए  पोषण, श्वसन और उत्सर्जन, आदि जो जैव प्रक्रम के अंतर्गत होने वाली प्रक्रियाएँ हैं, को मापदंड के रूप में उपयोग किया जा सकता है कि कोई वस्तु सजीव है या निर्जीव।सजीव में जैव प्रक्रम की प्रक्रियाएं होंगी जबकि निर्जीव में नहीं।

3-किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?

उत्तर-पृथ्वी पर जीवन कार्बन आधारित है , तथा अधिकांश खाद्य पदार्थ भी कार्बन आधारित हैं, इसलिए जीवों के द्वारा इन कार्बन आधारित कच्चीसामग्रियों का उपयोग  किया जाता है। 

4-जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?

उत्तर- जीवन के अनुरक्षण के लिए पोषण (Nutrition), श्वसन(Respiration),परिवहन (Transportation), उत्सर्जन (Excretion) जैव प्रक्रम के  साथ ही  अणु गति भी आवश्यक मानी गई है।

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प्रश्न1. स्वपोषी एवं विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?


उत्तर:


स्वपोषी पोषण विषमपोषी पोषण

जो जीवधारी सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण स्वयं कर लेते हैं, स्वपोषी कहलाते है और भोजन ग्रहण करने की इस प्रक्रिया को स्वपोषी पोषण कहते है।

जो जीवधारी सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण नहीं कर पाते विषमपोषी कहलाते हैं। ये अपना कार्बनिक भोजन अन्य जीवधारियों से प्राप्त करते हैं।

पौधे CO₂ और जल से पर्णहरिम तथा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में  प्रकाश  संश्लेषण द्वारा कार्बनिक भोजन का  संश्लेषण करते हैं। पोषण के आधार पर विषमपोषी शाकाहारी,मांसाहारी, परजीवी मृतजीवी आदि प्रकार के होते  हैं ।

हरे पौधे तथा नीले-हरे शैवाल तथा कुछ प्रकाश संश्लेषी जीवाणु स्वपोषी पोषण द्वारा भोजन ग्रहण करते हैं।

समस्त जन्तु, कवक, जीवाणु, परजीवी पौधे आदि में विषमपोषी पोषण पाया जाता है।


प्रश्न 2 . प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?

उत्तर: हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल का प्रयोग कच्ची सामग्री के रूप में करता है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से रंध्रों(stomata) द्वारा प्राप्त करते हैं, तथा पौधों की जड़े भूमि से जल प्राप्त करती हैं।


प्रश्न 3 . हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?

अथवा मनुष्य के आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा श्लेष्मा की भूमिका लिखिए।

उत्तर : हमारे आमाशय में अम्ल की निम्नलिखित भूमिका है-

(1) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ,प्रोटोन पाचक निष्क्रिय पेप्सिनोजन एन्जाइम को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है।

(2) अम्ल भोजन को सड़ने से रोकता है।

(3) अम्ल भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं आदि को नष्ट करता है ।

(4) अम्ल के कारण अस्थियां आदि कठोर पदार्थ घुल जाते हैं जिससे इनका पाचन सुगमता से हो जाता है।

श्लेष्मा की भूमिका

(1) श्लेष्मा (mucosa) से भोजन आहार नाल में सुगमता से खिसकता है।

(2) श्लेष्म के कारण आहार नाल के ऊतक HCI या पाचक एन्जाइम के संपर्क में नहीं आते और क्षतिग्रस्त

होने से बचे रहते हैं।


प्रश्न 4 .पाचक एन्जाइम का क्या कार्य है ?

उत्तर : पाचक एन्जाइम्स आहारनाल में जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थो को सरल घुलनशील इकाइयों परिवर्तित कर देते हैं,  पाचक एन्जाइम्स के कारण जटिल कार्बोहाइड्रेट्स ग्लूकोज में, प्रोटीन्स अमीनो अम्ल में, वसा वसीय अम्ल या ग्लिसरॉल में बदल जाती है।


प्रश्न 5 . पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?

उत्तर : क्षुद्रांत्र (small intestine) की भीतरी सतह पर लाखों अंगुली सदृश रसांकुर (villi) तथ सूक्ष्मरसांकुर (microvilli) पाए जाते हैं, ये क्षुद्रात्र की अवशोषण सतह का क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। रसाकुर में रक्त केशिकाओं तथा लसीका केशिकाओं का जाल फैला रहता है, जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाती हैं।

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प्रश्न 01. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?

उत्तर: जलीय जीव श्वसन हेतु आवश्यक ऑक्सीजन जल से प्राप्त करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायुमण्डल में पाई जाने वाली ऑक्सीजन को मात्रा से बहुत कम होती है। इसलिए जलीय प्राणियों की श्वास दर अधिक होती है, जबकि स्थलीय जीवों को प्रचुर मात्र में ऑक्सीजन उपलब्ध होती है इसलिए श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव अधिक लाभप्रद है।

प्रश्न 02 . ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?

उत्तर: विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण निम्नलिखित प्रकार से हो सकता है—

(1) ऑक्सीश्वसन अधिकांश जीवों में यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।

(2) ऑक्सीजन के अभाव में - जैसे हमारी मांसपेशियों में।

(3) ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में - जैसे यीस्ट में।

विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण

प्रश्न 03 . मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

उत्तर : ऑक्सीजन का परिवहन (Transport of Oxygen)- मनुष्य के फेफड़ों की कूपिकाओं (alveoli) में उपस्थित वायु से ऑक्सीजन विसरण द्वारा रक्त केशिकाओं में पहुँचकर रक्त के हीमोग्लोबिन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) का निर्माण करती है। अस्थायी ऑक्सीहीमोग्लोबिन कोशिकाओं में पहुंचकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है।

कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन(Transport of Carbon dioxide )

(क) कार्बोनिक अम्ल के रूप में लगभग 5-10% कार्बन डाइऑक्साइड रक्त प्लाज्मा के जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है।


(ख) कार्बोनेट के रूप में लगभग 80-85% कार्बन डाइऑक्साइड लाल रुधिराणु तथा रक्त प्लाज्मा के

सोडियम तथा पोटैशियमसे क्रिया करके सोडियम तथा पोटेशियम बाइकार्बोनेट्स बनाती है।


(ग) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन लगभग 10% कार्बन डाइऑक्साइड लाल रुधिराणु के हीमोग्लोबिन से क्रिया

करके कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है।


प्रश्न 04 . गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?

उत्तर : श्वासनाल (trachea) वक्ष गुहा में पहुंचकर दाएँ-बाएँ दो शाखाओं में बंट जाती है, इन्हें श्वसनी (bronchi) कहते हैं। फेफड़ों में पहुँचकर प्रत्येक श्वसनी (bronchus) बार-बार विभाजित होकर श्वसनिकाओं (bronchioles) का निर्माण करती हैं। श्वसनिकाएं पुनः विभाजित होकर कूपिका नलिकाओं का निर्माण करती है। प्रत्येक कूपिका नलिका थैलीनुमा कूपिकाओं (alveoli) में खुलती है। जिससे दोनों फेफड़ों में गैसों के विनिमय के लिए लगभग 50 से 100 वर्ग मीटर का सतह क्षेत्रफल होता है। इस प्रकार हमारे फेफड़े गैसो के अधिकतम आदान-प्रदान के लिए होते हैं।


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प्रश्न 1. मानव में वहन तन्त्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य है?

A . हृदय (Heart)–यह एक पंप की तरह कार्य करता है।यह शरीर के विभिन्न भागों से रक्त को एकत्र करके शरीर के विभिन्न भागों में पम्प करता रहता है।

B. रुधिर वाहिकाएँ (Blood Vessels):

1 -धमनियाँ (Arteries)-हृदय से शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त (Oxygenated blood) | ले जाती हैं। फुफ्फुस धमनी(Pulmonary artery) में डीऑक्सीजनेटेड (कार्बन डाइऑक्साइड युक्त ) रक्त बहता है। 

2 -शिराएँ (Veins)-विभिन्न अंगों सेडीऑक्सीजनेटेड (Deoxygenated)(कार्बन डाइऑक्साइड युक्त ) रक्त को  हृदय तक वापस  लाती हैं। फुफ्फुस शिरा (Pulmonary vein) में शुद्ध रक्त बहता है।

C. रुधिर या रक्त (Blood)-यह तरल संयोजी ऊतक है। यह परिवहन का माध्यम है ,रुधिर  के घटक निम्नलिखित हैं ।  1 -प्लाज्मा (Plasma)-भोजन के अणुओं, CO2नाइट्रोजनी वर्त्य (nitrogenous wastes), लवण, हार्मोन, प्रोटीन आदि का विलीन रूप में वहन करता है। 2 (लाल रक्त कणिकाएँ )RBC-इसमें हीमोग्लोबीन होता है, जो ऑक्सीजन को ले जाती है। 3 (श्वेत रक्त कणिकाएँ )WBC-संक्रमण से लड़ने में सहायता करता है। यह शरीर में आए रोगाणुओं को मारकर शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है।4 प्लेटलेट्स (Plateletes)-रक्तस्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध कर देती है।

प्रश्न 2 . स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना की आवश्यक है?

उत्तर : स्तनधारी तथा पक्षियों को शरीर का  तापक्रम बनाए रखने के लिए निरंतर  अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को पृथक्-पृथक् रहने से ऑक्सीजन का वितरण अधिक प्रभावी तरीके से किए जाता है, जिससे स्तनधारी तथा पक्षियों को शरीर का  ताप निश्चित बना रहता है। 

प्रश्न 3 . उच्च संगठित पादप में वहन तन्त्र के घटक क्या हैं?

उत्तर: उच्च संगठित पादप में  वहन तंत्र के घटक निम्नलिखित हैं

(i) जाइलम (Xylem)- जाइलम ऊतक पादप के जड़ से खनिज लवण तथा जल का संवहन पादप के सभी भागों  तक करता है। 

(ii) फ्लोएम (Phloem) - प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप पत्तियों में बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संवहन पत्तियों से अन्य सभी अंगों तक फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है।


प्रश्न 4 . पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?

उत्तर : पादप में जल तथा खनिज पदार्थों का परिवहन जाइलम द्वारा होता है। जल तथा खनिज लवण का अवशोषण पादप जड़ों द्वारा करते हैं। जाइलम की वाहिनिकाएँ (tracheid's) एवं वाहिकाएं (vessels) जल संवहन का कार्य करती हैं। जड़ द्वारा अवशोषित जल के पत्तियों तक पहुँचने की क्रिया रसारोहण (Ascent of sap)कहलाती है। जाइलम वाहिकाओं तथा वाहिनियों में जल के अटूट स्तम्भ होते हैं। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल स्तम्भ पर वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (transpiration pull) उत्पन होता है। वाष्पोत्सर्जनाकर्षण  जल की गति के लिए एक मुख्य प्रेरक बल होता है।


प्रश्न 5 . पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है?

उत्तर :पादप में भोजन का स्थानांतरण फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है। पत्तियों की कोशिकाओं में निरन्तर प्रकाश संश्लेषण के कारण परासरणी दाब (osmotic pressure) अधिक बना रहता है। जड़ की कोशिकाओं का परासरणी दाब कम बना रहता है। परासरण दाब के इस अंतर के कारण कार्बनिक भोज्य पदार्थों का परिवहन चालनी नलिकाओं (sieve tube ) द्वारा उच्च परासरण दाब से निम्न परासरण दाब की ओर निरन्तर होता रहता है।


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प्रश्न 1.वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।

उत्तर :संरचना (Structure)-मानव शरीर में एक जोड़ी  वृक्क होते हैं। वृक्क (kidney) का निर्माण असंख्य सूक्ष्म कुण्डलित वृक्क नलिकाओं (नेफ्रॉन ) से होता है। नेफ्रॉन को वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते हैं।नेफ्रॉन के दो भाग होते है-

(i)मैलपोधी कोष (Malpighian corpuscles) तथा (ii) स्रावी नलिका (secretory tubule)

1.मैलपोधी कोष (Malpighian corpuscles)-मैलपीघी कोष में कप के आकार का बोमैन सम्पुट (Bowman's capsule) होता है इसमें रक्त केशिकाओं का गुच्छा(glomerulus) होता है

2 .स्रावी नलिका (secretory tubule)- स्रावी नलिका के तीन भाग होते हैं- (i) समीपस्थ कुण्डलित भाग, (i) मध्य का हेनले लूप तथा (iii) अन्तिम कुण्डलित भाग ,मध्य भाग तथा हेनले लूप के चारों ओर रक्त केशिकाओं का जाल होता है। इसे परिनलिका केशिका जालक कहते हैं। नेफ्रॉन का अन्तिम कुण्डलित भाग संग्रह नलिका (collecting duct)  में खुलता है।

क्रियाविधि (Working)– कोशिका गुच्छ (ग्लामेरूलस) में रक्त का परानिस्यंदन (ultrafiltration) होता है, इसके बाद नेफ्रिक निस्यंदन (nephric filtrate) बनता है। नेफ्रिक निस्यंदन में कुछ उपयोगी पदार्थ; जैसे-ग्लूकोज, अमीनों अम्ल, लवण तथा जल रह जाते हैं जिनका पुन: अवशोषण (reabsorption) होता है। इसके बाद मूत्र ,संग्राहक नलिका से मूत्राशय में पहुंचा दी जाती है। 


प्रश्न 2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?

उत्तर: पौधों में उत्सर्जी तन्त्र का अभाव होता है। उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं-

(1) उपापचय क्रिया के फलस्वरूप बनी CO2  का निष्कासन रन्ध्र (stomata) द्वारा किया जाता है।

(2) जड़ो द्वारा अवशोषित अतिरिक्त जल वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमण्डल में मुक्त कर दिया जाता है।
(3 ) पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते हैं।
(4) पादपों के अपशिष्ट उत्पाद जैसे रेजिन, गोद, टेनिन आदि मृत जाइलम (dead xylem) में संचित हो जाते है।
(5) अनेक उत्सर्जी पदार्थ कोशिकाओं को रिक्तिका (vacuole) में संचित हो जाते हैं।


प्रश्न 21. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?

उत्तर: मूत्र की मात्रा का नियमन शरीर में उपस्थित अनावश्यक जल की मात्रा तथा शरीर में उपस्थित वर्ज्य (waste) पदार्थों की मात्रा के आधार पर होता है, जैसे ग्रीष्म ऋतु में पसीने के रूप में जल के निकल जाने के कारण मूत्र की मात्रा कम हो जाती है परन्तु शीत ऋतु में पसीना बहुत कम आता है, इसलिए शरीर में जल की मात्रा अधिक हो जाने से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

अभ्यास में दिए गए प्रश्न

प्रश्न  1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है

(a) पोषण

(b) श्वसन

(c) उत्सर्जन

(d) परिवहन सीसा अपचयित हो रहा है।

उत्तर : (c) उत्सर्जन

प्रश्न 2. पादप में जाइलम उत्तरदायी है

(a) जल का वहन

(b) भोजन का वहन

(c) अमीनो अम्ल का वहन

(d) ऑक्सीजन का वहन

उत्तर : (a) जल का वहन

 प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है

(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल 

(b) क्लोरोफिल

(c) सूर्य का प्रकाश 

(d) उपरोक्त सभी

उत्तर : (d) उपरोक्त सभी

 प्रश्न 4. पायरूवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है

(a) कोशिकाद्रव्य 

(b) माइटोकॉन्ड्रिया

(c) हरित लवक 

(d) केन्द्रक

उत्तर : (b) माइटोकॉन्ड्रिया

प्रश्न 5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?

उत्तर: हमारे शरीर में वसा का पाचन क्षुद्रांत्र में होता है |  वसा के पाचन के लिए क्षुद्रांत्र यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है | क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में पहुँचता है, जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्किल हो जाता है । यकृत द्वारा स्रावित पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता है इस   क्रिया को इमल्सीकरण कहते हैं , जिससे वसा का पाचन शीघ्र हो सके।  इमल्सीकृत वसा को लाइपेज  एंजाइम वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता  है 

प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?

उत्तरभोजन के पाचन में लार की निम्नलिखित  भूमिका है। 

1 लार भोजन को गीला करती है । इससे भोजन को निगलने में सुविधा होती है। 

लार में एक एंजाइम होता है जिसे लार एमिलेस कहते हैं, यह मंड (स्टार्च) के टिल अणुओं को सरल शर्करा में बदलता है। 

3 लार में उपस्थित लाइसोजाइम (lysozyme) जीवाणु आदि सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।

प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?

उत्तर: स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

  • क्लोरोफिल की उपस्थिति 
  • कार्बन डाईऑक्साइड गैस 
  • सूर्य का प्रकाश 
  •  जल 
स्वपोषी जीव सरल अकार्बनिक पदार्थों के उपयोग से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं।  

प्रश्न 8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर हैं? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।

उत्तर: वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में निम्नलिखितअंतर  है–

वायवीय श्वसन  अवायवीय श्वसन 
वायवीय श्वसन  वायु (ऑक्सीजन) की उपस्थिति में होता है। अवायवीय श्वसन वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता है। 
ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से कार्बन डाइऑक्साइड  तथा जल बनता है।   ग्लूकोस  का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं हो पाता जिससे  ऐल्कोहॉल या लैक्टिक अम्ल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनती हैं।
यह प्रक्रम सभी जीवधारियों में होता है। यह प्रक्रम कुछ पौधों, कुछ जंतुओं की मांसपेशियों तथा कुछ सूक्ष्म जीव जैसे यीस्ट  में किण्वन के समय में होता है ।
ग्लाइकोलिसिस को छोड़कर सभी क्रियाएं माइटोकॉन्ड्रिया में होती हैं। 

सभी प्रकार की क्रियाएं कोशिकाद्रव्य  में होती हैं ।

वायवीय श्वसन में ऊर्जा का मोचन अधिक होता है (673 kcal)। अवायवीय श्वसन में ऊर्जा का मोचन अपेक्षाकृत कम होता है।(21-24 kcal)
एक अणु ग्लूकोज से 38 ATP अणु प्राप्त होते हैं एक अणु ग्लूकोज से केवल 2 ATP अणु प्राप्त होते हैं। 

 प्रश्न 9. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?

उत्तरश्वासनाल (trachea) वक्ष गुहा में पहुंचकर दाएँ-बाएँ दो शाखाओं में बंट जाती है, इन्हें श्वसनी (bronchi) कहते हैं। फेफड़ों में पहुँचकर प्रत्येक श्वसनी (bronchus) बार-बार विभाजित होकर श्वसनिकाओं (bronchioles) का निर्माण करती हैं। श्वसनिकाएं पुनः विभाजित होकर कूपिका नलिकाओं का निर्माण करती है। प्रत्येक कूपिका नलिका थैलीनुमा कूपिकाओं (alveoli) में खुलती है। कूपिकाओं (alveoli) से दोनों फेफड़ों में गैसों के विनिमय के लिए लगभग 50 से 100 वर्ग मीटर का सतह क्षेत्रफल उपलब्ध होता है। इस प्रकार गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं । 

 प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के परिणाम हो सकते हैं?

उत्तर: मानव शरीर में हीमोग्लोबिन,एक श्वसन वर्णक है जो शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन पहुंचाता है। यह वर्णक लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित होता है | इसकी  कमी से हमारे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी जिससे भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण कम मात्रा में होगा व जैविक कार्यों के लिए कम ऊर्जा उपलब्ध होगी, ऊर्जा की कमी के कारण जल्दी थकन महसूस होगी  | हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाले रोग को एनीमिया कहते हैं।   

 प्रश्न 11. मानव में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए | यह क्यों आवश्यक है?

उत्तरमनुष्य के परिसंचरण तंत्र को दोहरा परिसंचरण इसलिए कहते हैं, क्योंकि रुधिर एक बार अंगो से लौट आने पर वापस अंगो में जाने से पहले ह्रदय में से दो बार गुजरता है रुधिर को हमारे शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड दोनों का ही वहन करना होता है| ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर को कार्बन डाईऑक्साइड युक्त रुधिर से मिलने को रोकने के लिए हृदय कोष्ठों में बंटा होता है |  हमारे शरीर में उच्च ऊर्जा की पूर्ती के लिए   अधिक  ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है तथा शरीर का तापक्रम बनाए रखने के लिए भी निरंतर ऊर्जा की की आवश्यकता होती है  इसलिए  मानव में दोहरा परिसंचरण लाभदायक होता है।

 प्रश्न 12. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?

उत्तर: जाइलम में पदार्थों का  वहन -जाइलम मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों को वहन करता है | अवशोषित किए गए जल या खनिज लवण को  जाइलम वाहिकाओं (vessels) तथा वाहिनिकाओं (tracheid's) द्वारा पौधे के विभिन्न में  पहुँचाया जाता है। जाइलम  जल एवं खनिज पोषक तत्वों के परिवहन के अतिरिक्त पौधों को यान्त्रिक सहायता भी प्रदान करता है।

फ्लोएम में पदार्थों का  वहन -पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण  के उत्पादों का परिवहन   पौधे के विभिन्न  भागों तक  फ्लोएम के द्वारा होता है। यह कार्य फ्लोएम की चालनी नलिकाओं (sieve tubes) द्वारा होता है।चालनों नलिकाओं के बीच-बीच में पाई जाने वाली सहकोशिकाएँ (companion cells) इस कार्य में सहायक होती हैं।

प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।

उत्तरकूपिकाओं की रचना तथा क्रियाविधि –फेफड़ों में पहुँचकर प्रत्येक श्वसनी (bronchus) बार-बार विभाजित होकर श्वसनिकाओं (bronchioles) का निर्माण करती हैं। श्वसनिकाएं पुनः विभाजित होकर कूपिका नलिकाओं का निर्माण करती है। प्रत्येक कूपिका नलिका थैलीनुमा कूपिकाओं (alveoli) में खुलती है।  | कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है | कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का जाल होता है | रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है तथा शरीर से कार्बन डाईऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है | 

वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि - 

संरचना (Structure)- वृक्काणु(नेफ्रॉन)को वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते हैं।नेफ्रॉन के दो भाग होते है-(i)मैलपोधी कोष (Malpighian corpuscles) तथा (ii) स्रावी नलिका (secretory tubule)
मैलपीघी कोष में कप के आकार का बोमैन सम्पुट (Bowman's capsule) होता है इसमें रक्त केशिकाओं का गुच्छा(glomerulus) होता है ,कोशिका गुच्छ (ग्लामेरूलस) में रक्त का परानिस्यंदन (ultrafiltration) होता है, इसके बाद नेफ्रिक निस्यंदन (nephric filtrate) बनता है। नेफ्रिक निस्यंदन में कुछ उपयोगी पदार्थ; जैसे-ग्लूकोज, अमीनों अम्ल, लवण तथा जल रह जाते हैं जिनका पुन: अवशोषण (reabsorption) होता है। इसके बाद मूत्र ,संग्राहक नलिका से मूत्राशय में पहुंचा दी जाती है।